घर
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घर किसे नहीं खींचता?
किस हृदय में नहीं बसता?
राम के मन में भी
अयोध्या बसती थी।
लंका विजयोपरान्त
घर पहुँचने की जल्दी थी।
घर से दूर रहने पर भी
हृदय में घर ही घर करता है।
इसीलिए दूसरा कोई भी डेरा-ठिकाना
घर नहीं, आवास भर लगता है।
हममें से कुछ साइबेरिया की
पक्षियों की तरह होते हैं।
मौसम बदलते ही
घर की ओर भागते हैं।
और हममें से कुछ
वे पक्षी होते हैं।
जो जीवन भर
प्रवासी रह जाते हैं।
किसी को जुगुनुओं भरे
पीपर-पात में आनंद आता है
किसी को जगमगाता शहर
जीवन भर भाता है।
लेकिन कहीं एक कोने में
वह घर बसता है।
वह नीड़ रहता है
जहाँ से व्यक्ति
अपने पंख पसारता है
आकाश नापता है।
कुछ इस नापतौल में
बहुत दूर चले जाते हैं
कुछ आकाश नापकर
वापस घर आते हैं।
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घर किसे नहीं खींचता?
किस हृदय में नहीं बसता?
राम के मन में भी
अयोध्या बसती थी।
लंका विजयोपरान्त
घर पहुँचने की जल्दी थी।
घर से दूर रहने पर भी
हृदय में घर ही घर करता है।
इसीलिए दूसरा कोई भी डेरा-ठिकाना
घर नहीं, आवास भर लगता है।
हममें से कुछ साइबेरिया की
पक्षियों की तरह होते हैं।
मौसम बदलते ही
घर की ओर भागते हैं।
और हममें से कुछ
वे पक्षी होते हैं।
जो जीवन भर
प्रवासी रह जाते हैं।
किसी को जुगुनुओं भरे
पीपर-पात में आनंद आता है
किसी को जगमगाता शहर
जीवन भर भाता है।
लेकिन कहीं एक कोने में
वह घर बसता है।
वह नीड़ रहता है
जहाँ से व्यक्ति
अपने पंख पसारता है
आकाश नापता है।
कुछ इस नापतौल में
बहुत दूर चले जाते हैं
कुछ आकाश नापकर
वापस घर आते हैं।
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