Friday, August 6, 2021

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ

हालचाल सब जुड़े टके से।

टका नहीं यदि जेब में तो

रहते सभी कटे-कटे से।।

मधुमक्खी भी वहीं मँडराती

मकरन्द जहाँ वह पाती है। 

सेमल के फूलों पर भी क्या

कभी वह देखी जाती है?

प्रात कुमुद पर वह मँडराती

मध्याह्न कमल-रस पीने जाती।

सायं होते उन्हें छोड़कर

विहान नया रस लेने जाती।।

रस नहीं तनिक भी जहाँ मिले

कोई क्यों उस ओर चले? 

सम्पन्न नहीं जो स्वयं यहाँ

उससे मिलता है कौन गले?

भुजाओं में यदि अतुलित बल हो

तिजोरियों में अतुलित धन हो। 

समझो पूछेंगे-पूजेंगे सब

मानो भरे जेठ में सावन हो।।

तनिक मधु ढरकाकर देखो

भौंरे भर-भर आयेंगे।

एक स्वर हो गूँज-गूँज कर

यशोगान कर जायेंगे।।

दीपक भी उतना जलता है

स्नेह उसे जितना मिलता है।

स्नेह तनिक सा कम होते ही

देखो वह भभका करता है।।

पक्षी भी आते हैं घर में

मन में दानों का मोह लिये।

नहीं उतरते हैं आँगन में

बिन दाना-पानी का टोह लिये।।

विपन्न भला क्या दे सकता है?

शून्य मिला हिस्से में जिसको।

बित्ता भर की बिसात नहीं

दे ही क्या सकता है किसको?

दामी को सम्मान मिले

यहाँ वही सदा सन्नाम रहे।

राक्षस सी करतूतें हों

फिर भी सबका राम रहे।।

अकिञ्चन तो शब्दमात्र है

कञ्चन सब कुछ होता है।

कञ्चन का काञ्चन-संयोग

अकिञ्चन केवल रोता है।।

सुदामा के तण्डुलों का

अब यहाँ न कोई मोल रहा।

झोपड़ी से अट्टालिकाओं तक

केवल कञ्चन का ही तोल रहा।।

सियारों से बड़े स्वांग यहाँ हैं

दाँत निपोरे घाघ यहाँ हैं।

घिग्घी बँधी दीखती है पर

बघनख वाले बाघ यहाँ हैं।।

एक झपट्टे में ही सबकुछ

लील-पचा ये जाते हैं।

देखने वाले कहते हैं कि

ये वायुपान कर जीते हैं।। 

#ममतात्रिपाठी 



Monday, June 29, 2020

नारीवादी ढकोसला

जे सेंदुर टिकुली कै बिरोध
और बिछिया कै बिरोध किहिन
अब देखौ टिकुली नाहीं
बड़कवा टिकुला माथे पर
चपकाये देखात हीं।
टिकुलवा के बल पर
बड़की फेमिनिस्ट कही जात हीं।।।
बिछिया का बताइन
बन्धन मेहररुवन कै
अपना बियाहेन से पहिलेन
बिछिया पहिने तैनात हीं।
वही से
बड़की फेमिनिस्ट कही जात हीं।।
मंगलसूत तूड़ि-तूड़ि बहावै कै
अभियान चलाइन
अपना गटई भा लोहा-लंगड़ कै
गटहिला पहिने देखात हीं।
यहै सब पहिर कै
बड़की फेमिनिस्ट कही जात हीं।।
नकुना-कान छेदावै का
पिछड़ापन औ शोषण बताइन
उनके नकुना मा बायें नाहीं
दहिने कील-नथुनी देखात ही।
 यहि मेर पहिर कै
बड़की फेमिनिस्ट कही जात हीं।।
ई सब छलावा है
सबका भड़कावै का।
आपन राह छोड़
गलत राह पर चलावै का।
घर-परिवार तूरि तूरि
बिषबेलि बोइ-बोइ
अपना बड़की फेमिनिस्ट कहावै का।।
@ममतात्रिपाठी
#soCalledFeminism

Saturday, June 27, 2020

पूत

माँ-बाप का दुत्कारत हैं
औ कूकुर-बिलार दुलारत हैं
यहि मेर पुतवै पुरखन का
नरक से तारत है
ड्यौढ़ी दरकावत औ
ढबरी बुतावत है
देखौ कुलदीपकऊ
कुल कै दीपक बारत है।
कीर्ति करिखा करत
प्रतिष्ठा स्वाहा करत
पेड़-पालौ औ
खेत-बगियय नाहीं
श्मशानौ बेचि डारत हैं
सत्तर देवखरन का
पूजि कै भये भैया
आज माई-बाप का
आँख तरेरत हैं।।
मरे पै पानी देहैं
वहकै तो पता नाहीं
परान रहे जे
बूँद-बूँद तरसावत हैं।

Wednesday, June 17, 2020

सूर्य बनो

गाढ़ा हो अन्धकार
दिया से काम न चले
तब सूर्य बनो तुम।
शत्रु धूर्त हो
साम से काम न बने तो
दण्ड का नया विधान धरो तुम।।
ध्यान रहे
पत्थर पर भी उग आने की
जिजीविषा है तुममें
भरतपुत्र हो
शत्रुञ्जय होने की
जिगीषा है तुममें।


Tuesday, June 16, 2020

विरासत में ऐसा संसार मिला

खिड़कियों से झाँककर
संसार निहारें हम
ऐसा हमारे बड़ों ने
संसार सौंपा है।
अपनी भोगलिप्सा से
पञ्चतत्त्व प्रदूषित कर
हमें चुनौतियों का
पहाड़ सौंपा है।।
पहला कदम रखते ही
औ बेड़ियाँ पड़ गयी
खिंच गयी लक्ष्मणरेखा
अभी हमने संसार को
न देखा न निहारा
न जाँचा, न परखा।

Monday, June 15, 2020

गुलमोहर


गुलमोहर
बदरंग मन में
रंग भरते गुलमोहर
निराश हृदय को
आस दिलाते गुलमोहर
खिलते रहो
उदासियों में भी
जीवन्त रहो
नीरवता में भी
रंग ही हैं
बोल बनते
रंग बिखेरते गुलमोहर।
गुलमोहर की
धूल-धूसरित
धूमिल पत्तियाँ 
वर्षा में धुलकर
चटक होतीं
उत्थान-पतन
निर्माण - ध्वंस की
अमर गाथा गातीं
हारे मन को
आस बँधातीं
गुलमोहर की पत्तियाँ।
#ममतात्रिपाठी


Monday, June 8, 2020

महिमा मोबाइल कै

कोठरी मा अँधेर
मुँह पर उँजेर है
ई सब कुछू नाहीं
मोबाइल कै खेल है
मोबाइल देखि कै
आँख चौंधियान ही
पलक झपकत ही
अँखिया निंदान ही
मुला मोबाइल कै
ई मोह नाहीं छूटत है।
मनई नींद का ढकेल कै
स्क्रीन ऊपर नीचे खसकावत
औ टुकुर-टुकुर ताकत है।।
ई नयी देन है
सभ्यता के बिकास कै
लकिन कब्बौ कब्बौ
लागत बड़ी आफत है।
कोरोना के काल मा
काल से डेरान सभै
अब पढ़ाई कै कक्षौ
मोबाइल मा लागत है।।
नीक-सूक डिबिया ई
सबका बाँधे हैं
राजा होंय रंक चाहै
सबका साधे है।
-ममता त्रिपाठी



यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...