Tuesday, June 16, 2020

विरासत में ऐसा संसार मिला

खिड़कियों से झाँककर
संसार निहारें हम
ऐसा हमारे बड़ों ने
संसार सौंपा है।
अपनी भोगलिप्सा से
पञ्चतत्त्व प्रदूषित कर
हमें चुनौतियों का
पहाड़ सौंपा है।।
पहला कदम रखते ही
औ बेड़ियाँ पड़ गयी
खिंच गयी लक्ष्मणरेखा
अभी हमने संसार को
न देखा न निहारा
न जाँचा, न परखा।

4 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-06-2020) को   "उलझा माँझा"    (चर्चा अंक-3735)    पर भी होगी। 
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
सादर...! 
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
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Rakesh said...

वाह

गिरिजा कुलश्रेष्ठ said...

खिड़की से ही झाँकने की विरासत मिल रही है या निकट भविष्य में मिलने वाली है ..वहुत सही सटीक अभिव्यक्ति ..

अनीता सैनी said...

हृदय स्पर्शी सृजन.खिड़की पर सिमटता बालपन यथार्थ सृजन .
सादर

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...