चट्टाने भी दहशत में हैं।
बेखौफ हवायें नहीं रहीं
शह देने वाले दहशत में हैं॥
कल तक मिटाते प्यास रहे
औरों के रुधिरों से जो,
अपना रुधिर बहता देख
देखो कैसे दहशत में हैं।
बारूदी गन्धें साल रहीं
रह-रहकर चीख-पुकार मची।
उठ रहीं लपट स्वाहा करने
बारूद बनाने वाले दहशत में हैं।।
दूसरों के घर की खुशी छीनते
अपनी खुशियाँ चली गयीं।
अपनी ही तलवारें देखो
करने लगीं उन्हें छलनीं॥
अपने ही पाले दहशतगर्दों से
वे देखो कैसे दहशत में हैं।।
दूसरे के लिये कुआँ खोदा
औंधें मुँह गिरे उसी में।
अपने ही लगा ले गयें
सेंध उसकी हँसी-खुशी में॥
अब खुशियों को छिनता देख
षड्यन्त्री भी दहशत में हैंं।
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दूसरे के लिये कुआँ खोदा
औंधें मुँह गिरे उसी में।
अपने ही लगा ले गयें सेंध
उसकी हँसी-खुशी में॥
अब खुशियों को छिनता देख
षड्यन्त्री भी दहशत में हैंं।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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