Sunday, January 4, 2015

भावना

आज ऐसी क्षीण रेखा,
भाव गति को मन्द देखा।
बह पड़ी वह भावना सी
एक मधुर उलाहना सी।
चन्द्रिका के विकल्प हित
शशियूथ वह सजा था।
मनोरम चाँदनी का
मूक वह प्रत्युत्तर था।।
नूपुरों सी हैं खनकती
उर्मियाँ इस महोदधि की।
केसर-अगरु सी महकतीं,
वल्लरियाँ स्नेहनिधि की॥
भाव की हर अर्चना हैं
अर्चिता भी भावनायें।
क्षितिज के इस पार से
उस पार तक चलती हवायें॥
इन हवाओं की विविधता
आजतक कुछ बोलती है।
सृष्टि के अनगिनत पहलू
बुनती औ खोलती है॥

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