Sunday, January 11, 2015

अभिव्यक्ति

शब्दों के झरने से
जब अभिव्यक्ति झरती है।
विचारों की वायु
जब हिलोरें भरती है।
तब हर पुष्प अपने मकरन्द की
एक छाप छोड़ जाता है।
यह कालजयी बटोही
काल के माथे पर एक पदचाप छोड़ जाता है॥

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (13-01-2015) को अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये..; चर्चा मंच 1857 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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उल्लास और उमंग के पर्व
लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

कमल said...

​बहुत ही बढ़िया ​!
​समय निकालकर मेरे ब्लॉग http://puraneebastee.blogspot.in/p/kavita-hindi-poem.html पर भी आना ​

मन के - मनके said...

यह कालजयी बटोही
काल के माथे पर
एक पदछाप छोड जाता है.
बहुत ही सुंदर.

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...