यह रात नहीं,
प्रभात है।
धुँधलका कुछ जरूर है
इस डगर में,
लगता है हम अभी भी
ठहरे हैं प्रथम पहर में,
पर यह कौन सी नयी बात है
अन्तिम छोर पर ही
छिपी सदा शुरुआत है॥
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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