आज कुहरा घना है
घनघोर घन सा तना है
कल भोर होगी
चाहे जितनी देर होगी
आलोक ले सूरज उगेगा
अंधकार फिर छँटेगा।
संक्रांति संक्रात होगा
शीत का मन शान्त होगा
फागुनी बयार बहेगी
रंगों से सराबोर करेगी
फिर होलिका-दहन होगा
द्वेषमुक्त मन होगा।
चैत के नवराग को ले
नववर्ष आयेगा
बसंती बयार ले
बसंत चहुँओर छायेगा।
फूलों की सुगंध से
सुगंधित होगा घर-उपवन
आलोकित अपूर्व रवि-आनन।।
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