राष्ट्र की अनुगूँज है यह
संस्कृति का गुञ्जार है।
साम रूप में सब्र बहुत है
भेद, दंड में अंगार है।।
Thursday, December 26, 2019
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यथार्थ
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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माँ-बाप का दुत्कारत हैं औ कूकुर-बिलार दुलारत हैं यहि मेर पुतवै पुरखन का नरक से तारत है ड्यौढ़ी दरकावत औ ढबरी बुतावत है देखौ कुलदीपकऊ ...
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खिड़कियों से झाँककर संसार निहारें हम ऐसा हमारे बड़ों ने संसार सौंपा है। अपनी भोगलिप्सा से पञ्चतत्त्व प्रदूषित कर हमें चुनौति...
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घर भरा, आँगन भरा है। पूरा जनसमुदाय खड़ा है। फिर कुछ अभी अधूरा है पैजनियाँ बिन सब सूना है।। अधर-अधर पर हँसी बसी है हर मुख पर...
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