निमिष भर में
ऊर्जस्वित मन
चमकता नयन
सभी सपनों सहित
मूँद गया
और हम
विस्फारित आँखों से
ताकते रहे
हृदय में उठी हाहा
और कसक एक साथ
हम काल की
क्रूर नियति को
निहारते रहे
पुनः वसन्त न आ सके
जीवन में आया
ऐसा अनन्त पतझड़
किंकर्तव्यविमूढ़ हो गयीं
ज्ञानेन्द्रियाँ
कर्मेन्द्रियाँ हो गयीं जड़
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यथार्थ
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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माँ-बाप का दुत्कारत हैं औ कूकुर-बिलार दुलारत हैं यहि मेर पुतवै पुरखन का नरक से तारत है ड्यौढ़ी दरकावत औ ढबरी बुतावत है देखौ कुलदीपकऊ ...
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गुलमोहर बदरंग मन में रंग भरते गुलमोहर निराश हृदय को आस दिलाते गुलमोहर खिलते रहो उदासियों में भी जीवन्त रहो नीरवता में...
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