रोटी की खोज में उलझे हुये
बीत जाते हैं बारह महीने
॥
पर राजनीति का तवा गर्म
होने पर
सोचते हैं सभी वे छीने,
हम छीने ॥
पतीले का चावल भात बन रहा
है
पानी उबलकर भाप बन रहा है
।
हो रहा है विस्थापन पर
यह परिणाम कार्य नहीं है
॥
अबकी बार कोई झूठा वादा-इरादा
जनमानस को स्वीकार्य नहीं
है ।
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