Tuesday, February 18, 2014

राजनीति के प्रश्न...

रोटी की खोज में उलझे हुये
बीत जाते हैं बारह महीने ॥
पर राजनीति का तवा गर्म होने पर
सोचते हैं सभी वे छीने, हम छीने ॥
पतीले का चावल भात बन रहा है
पानी उबलकर भाप बन रहा है ।
हो रहा है विस्थापन पर
यह परिणाम कार्य नहीं है ॥
अबकी बार कोई झूठा वादा-इरादा

जनमानस को स्वीकार्य नहीं है ।

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