एक विवेकानन्द हुये थे, अनुगूँज अभी तक जारी है ।
हर युवा विवेकानन्द बने, बस इसकी अब तैयारी है ॥
तिमिर तेज से किया तिरोहित, भरा नया आलोक,
ड्योढी पर कर दीप प्रज्जवलित, हरा मातु का शोक,
जन-जन, कण-कण आज देश का बस उसका आभारी है।
हर युवा विवेकानन्द बने, बस इसकी अब तैयारी है ॥
जब घोर अन्धकार में थी डूबी, रुदन कर रहीं भारतमाता ।
जब आतताईयों के अत्याचारों अन्ध-प्रशान्त खड़ा थर्राता ।
तब दूर क्षितिज से सारथि अरुण बन रविकिरण उतारी है ।
हर युवा विवेकानन्द बने, बस इसकी अब तैयारी है ॥
आलस्य और नैराश्य के गहन घन ने गगन घेरा था ।
उलूकों, श्वानों, काकों का जब हर डाल पर बसेरा था।
वेदान्त का तब शंखनाद कर, निकाली प्रभातफेरी है ।
हर युवा विवेकानन्द बने, बस इसकी अब तैयारी है ॥
विवर्ण मुख, विवृत वसना, अधर-कपोल रागहीन,
घण्टा-घड़ियाल-वंशी-वीणा-शंख-मृदंग हुये स्वरविहीन
नरेन्द्र ने विवेक-तार से माँ भारती की वीणा सँवारी है
।
हर युवा विवेकानन्द
बने, बस इसकी अब तैयारी है ॥
1 comment:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (13-01-2014) को "लोहिड़ी की शुभकामनाएँ" (चर्चा मंच-1491) पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हर्षोल्लास के पर्व लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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