लक्ष्म नहीँ लक्ष्मी अब आये,
सरस्वती का हो सम्मान।
विश्वक्षितिज पर विश्वगुरु बन
भारत का चहुँदिशि गुणगान।।
दीन दरिद्रता कोसो दूर हो,
कोई न हमेँ आँख दिखाये।
अगर मेघ बन कोई छाये तो
हम कालमेघ बन जायेँ।।
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
No comments:
Post a Comment