वरुणदेव का मधुर हास।.
ज्येष्ठ मेँ श्रावण का आभास।।
रेणु रेणु अब सिक्त हुआ,
व्यथा-भार से मुक्त हुआ।
उदक उड़ेला तप्त धरा पर,
लिया कष्ट करुणा को हर हर।।
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
No comments:
Post a Comment