Monday, December 29, 2014

कभी भक्त होते, कभी भागते हैं।

कभी भक्त होते, कभी भागते हैं।
लोक की रीति है, अवसर ताकते हैं॥
कभी सिर आँखों पर, कभी आँख सिर पर।
बदल जाते हैं, जैसे बदलता है अवसर,
त्याज्य वस्तु सा, न तनिक ताकते हैं।
कभी भक्त होते कभी भागते हैं॥
बारहों मौसम की बरफ यहाँ जमती।
महफिल भी सजती और उजड़ती॥
कोयल की कूक और कौवे के काँव से,
यह महफिल सजती वीरान होती॥
वीरानियों में भी बसन्त छा जाता,
गरीबी यहाँ कभी धनवान होती॥
बदलती है पूजा बदलते देवता यहाँ
सिसकियों के बदले होता कहकहाँ।
यहाँ लोग बस ताकतों को ताकते हैं ।
कभी भक्त होते, कभी भागते हैं॥

1 comment:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक प्रस्तुति।
--
नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
इसी कामना के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

यथार्थ

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