Sunday, January 4, 2015

संकल्प-वर्तिका

संकल्पो की वर्तिका;
भावना का स्नेह भरा।
आलोकित मानस,
प्रज्वलित है दिया॥
उज्जवल ललाट की
उज्ज्वल प्रभा बुलाती।
मानस के मोती को
सर-समुद्र खोजती॥
भटकाव खोज हित
एक बार फिर कस्तूरी के।
एक बार फिर से
तार जुड़े दूरी के॥

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर प्रस्तुति !
आज आपके ब्लॉग पर आकर काफी अच्छा लगा अप्पकी रचनाओ को पढ़कर , और एक अच्छे ब्लॉग फॉलो करने का अवसर मिला !

अभिषेक शुक्ल said...

बेहतरीन।

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...