Monday, March 16, 2015

ये कोहराम आम नहीं है

photo from google
आज नन्दनकानन का
ये कोहराम आम नहीं है,
यूँ ही काँव-काँव करना,
कोयलों का काम नहीं है॥
लगता है सच में रूठा है ऋतुराज,
बहार हो यहाँ से भगाया गया है।
काँटों का साज सजाकर उसे
बेबात यूँ ही रुलाया गया है॥
तभी कोयल की कूक आज
हूक बनी फिरती है।
कोयल भी स्वयं को
कौवों में गिनती है॥

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-03-2015) को "मायूसियाँ इन्सान को रहने नहीं देती" (चर्चा अंक - 1921) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Unknown said...

सुन्दर शब्द रचना,...............
http://savanxxx.blogspot.in

dr.mahendrag said...

दर्द को बयां करती अच्छी शाब्दिक अभिव्यक्ति

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...