Wednesday, April 15, 2015

संकल्प के स्नेह से ज्योति को नित धार दो

स्वप्न देखो
स्वप्नों को आकार दो,
संकल्प के स्नेह से
ज्योति को नित धार दो॥
देखते ही देखते
अलख जग जायेगा।
दीप-दीप जलेंगे
और जग जगमगायेगा॥
इस ज्योति की लौ को
जब पहला दान
तुम्हारा होगा,
फिर बढ़ेगे वे हाथ भी
स्नेह भरने
जिनको कण्ठ ने
कभी भी न पुकारा होगा।।
चरण चले चिन्गारी पर,
चिन्गारी भस्म बन जायेगी।
भावी पीढ़ी भर उठेगी स्वाभिमान से
ये भस्म चरणरज माथे से लगायेगी॥

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