Friday, June 19, 2015

अपने ऐशोआराम का इन्तजाम है ’लाल सलाम’


रोते रहे गरीबों पर,
गरीबी पर
फूस की छप्पर पर,
उससे बरसात में टपकते पानी पर
भीगते बिछौने पर
पर जब
खुद का आशियाना बनाने की बात आयी
तो वो छप्पर भी उजाड़ दिया।
रोते रहे भुखमरी पर
गरीबी पर
रोटी की तड़प पर
चूल्हे की बुझती राख पर
पर खुद के जठरानल की शान्ति के लिये
चूल्हा ही उजाड़ दिया॥
ढपली की थाप देकर
गरीबों, असहायों,
शोषितों, पीड़ितों,
दलितों एवं महिलाओं
से कन्धा लेकर,
तुमने खुद को ही उबारा है,
खुद को ही संवारा है।
स्वयं विक्रेता बनकर,
तुमने सबको बाजार में उतारा है॥
गरीबी खत्म करना,
शोषण खत्म करना,
दलितों एवं महिलाओं का
कल्याण करना
कभी तुम्हारा ध्येय न था।
तुम्हारा लक्ष्य था
गरीबी और मजबूरी को बेचना,
अधिक से अधिक उसकी बोली लगवाना,
इसलिये तुम घाव को बढ़ाते रहे,
उसे थपकी देकर रिसाते रहे,
ताकि बाजार में उसके भाव बढ़ें
और तुम मालामाल हो।
न शान्ति है
न क्रान्ति है
न मुक्ति है
कुछ् नहीं है
तुम्हारा "लाल सलाम"।
बस है अपने
एशोआराम का इन्तजाम।


2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुंदर !

JEEWANTIPS said...

सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार...

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