हम
चन्दन हैं
तुम
चन्दन हो
हम-तुम
दोनों चन्दन हैं।
पर
यह भुजंग सरीखा कौन खड़ा है
जिसने
हमको आधार बना
वैमनस्य का महल गढ़ा है।।
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
No comments:
Post a Comment