कभी
एक पल महापल बन जाता है।
मन-हृदय
विकल हो घबराता है।
अनिश्चय
के बादल निश्चय पर छाते हैं।
विचारों
के झंझावात आते हैं, जाते हैं।
मन
की शाखों को झिझोंड़कर दहलाते हैं।
समय
चक्र बदलता है धूप धूल में
वही झंझावात मधुर स्मृति बन जाते हैं
No comments:
Post a Comment