प्रतीक्षा प्रभात की...
कौन खिलेगा
कौन मुरझायेगा
कौन सूखेगा
कौन डूबेगा उदासियों में
कौन जीत पर इतरायेगा।
कौन होगा मँझधार में
किसको मिलेगा किनारा
यह बतायेगा
विहान का सूरज
प्रतीक्षित सबेरा।
जनता को सिकुड़ते
सरोवरों के युग में
कमल पसन्द है
या इस रफ्तार के समय में
पंचर पहियों की
घिसटती साईकिल।
या पसन्द है
आज की
घरों से सिमटकर
फ्लैटों में बसती
आज की पीढ़ी को
द्वार पर हाथी बाँधना।
या स्वयं सहारा ढूँढ़ते
पंजे की निःशक्त
अंगुलिका पकड़ना।
विहान बतायेगा कि
पंजे ने साईकिल को सोखा
या साईकिल ने पंजे को झटका।
हाथी हाँकने लगा
या कमल खिल उठा।
जनता ने किसे उठाया
किसे पटका
किसको लगा तेज तमाचा
किसने झेला
करारा झटका।
सब सामने होगा
प्रतीक्षा प्रभात की...
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