जिनकी चहँक से
बचपन गुलजार हुआ करता था।
जिनके कलरव से
भोर-सकार हुआ करता था।
जो उस समय
मनोरंजन करती थीं
जब चलचित्र का संसार
कोसो दूर था।
जो उस समय भी
घर भरा करती थीं
जब जीवन में नीरवता
अपनी कहानी
रचती थी।
जिन्होंने जीवन को
अपने कलरव से
नीरव नहीं होने दिया
आज उनके अस्तित्व पर
घोर संकट है
जिजीविषा अपने पाँव
पछाड़ रही है।
आज उनके
आवास पर संकट है
भोजन पर संकट है।
और अधिक क्या कहें
चमकते घरों में
बसे सभ्य समाज बीच
उन्हें तिनके का भी
संकट है।
तिनके का सहारा
कण और किनकी का सहारा
शुद्ध पेयजल का सहारा
सब छीन लिया है हमने
और बचपन की चहँक को
चमक में खोकर
बेसहारा
छोड़ दिया है हमने।
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