कुछ लोग
इकाई होकर
दहाई, सैकड़ा, हजार
दसहजार,लाख,दस लाख
का दम्भ भरते हैं
पर जनता उन्हें
इकाई से पहले
बायीं ओर का
शून्य समझती है।
इसलिए
महत्वपूर्ण मुद्दों पर
जनसरोकारों पर
उनके विचारों को
तुच्छ और न्यून
समझती है।
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