जनता का मत
ताश नहीं है
न शतरंज है
कि बाजी लगाया
जीत गये
जनता
तलाशती है
तराशती है
फिर सजाती है
अपनी बाजी और
जिताती है उसे
जिसे वो चाहती है
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यथार्थ
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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माँ-बाप का दुत्कारत हैं औ कूकुर-बिलार दुलारत हैं यहि मेर पुतवै पुरखन का नरक से तारत है ड्यौढ़ी दरकावत औ ढबरी बुतावत है देखौ कुलदीपकऊ ...
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गुलमोहर बदरंग मन में रंग भरते गुलमोहर निराश हृदय को आस दिलाते गुलमोहर खिलते रहो उदासियों में भी जीवन्त रहो नीरवता में...
9 comments:
लोकतन्त्र की जीत के भावार्थ वाली बेहद सशक्त रचना।
लोकतन्त्र की जीत के भावार्थ वाली बेहद सशक्त रचना।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 21 नवम्बर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
वाह! सटीक।
बहुत उम्दा
ये तो पब्लिक है ये सब जानती है ...
अच्छी रचना ...
जी अच्छी रचना..!!
सुन्दर
Atisunder....
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