Sunday, November 12, 2017

काल का प्रवाह..

वे दुष्यंत थे
भूल गये थे शकुन्तला को
आज के दुष्यंत हैं
जो शकुन्तला से मिलते ही हैं
भूलने के लिए।
वे दुष्यंत थे
याद आयीं थीं शकुन्तला उन्हें
अँगूठी देखकर
आज के दुष्यंत हैं
चलचित्र सा
फोटोग्राफों को
रिश्ते और रिश्तेदारों की
बातों को
चलता हुआ देखकर भी
नहीं पहचानते शकुन्तला को।
वे दुष्यंत थे
जिन्हें भरत को देखते ही
ममत्व आ गया था
आज के दुष्यंत हैं
जो भरत को देखते ही
कन्नी काटकर
कोना खोजने लगते हैं।
और क्या कहें
वे शकुन्तला थीं
दुष्यंत की भूल पर
बिलखीं थीं
पर नहीं गयी थीं
कण्व के आश्रम
मेनका का आवास ही
उनका वनवास बना था।
आज की शकुन्तला
अपने बायें हाथ में
कण्व के आश्रम की
चाबी लेकर चलती हैं
आज की शकुन्तला
न खोजती हैं
मेनका का आश्रम
न ही आश्रय लेती हैं वहां।
वे शकुन्तला थीं
जिन्होंने भरत को
भरत बनाया था
आज की शकुन्तला
भरत को
भर्त्सना से भरती हैं।
कहानियाँ नहीं बदलीं
पात्र नहीं बदले
बस समय बदल गया है
चरित्र बदल गया है
पटकथा का रुख बदल गया है।।

7 comments:

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

कहानियाँ नहीं बदलीं
पात्र नहीं बदले
बस समय बदल गया है
चरित्र बदल गया है
पटकथा का रुख बदल गया है।।
आपने अपने नजरिए से समाज का विभत्स आईना प्रस्तुत किया है। पुरुष अगर पुरुषार्थ बदले नारी अगर चरित्र बदले तो विघटित होगा समाज और शीघ्र ही अवश्यम्भावी है मानव का पतन।
मेरी शुभकामनाएँ स्वीकार करें

'एकलव्य' said...

आदरणीया ,सर्वप्रथम आपको इस विश्लेषणात्मक रचना हेतु हार्दिक बधाई। जो सत्य है !

दिगम्बर नासवा said...

समय के बदलाव को बाखूबी लिखा है ...
पर ये बदलाव तो हमारी ही देन है ... भौतिकतावाद जो हमने ही बोया है ...

Sudha Devrani said...

बहुत सुन्दर रचना....

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21-11-2017) को "भावनाओं के बाजार की संभावनाएँ" (चर्चा अंक 2794) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Mamta Tripathi said...

धन्यवाद सभी महानुभावों को

Jyoti Dehliwal said...

बदलते समय का बहुत सटीक विश्लेषण।

यथार्थ

रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...