अन्न-शाक-सब्जी सबके
बदल गये हैं रंग-ढंग
बढ़ा आयतन-द्रव्यमान है।
कल तक जो टमाटर
तनिक पारदर्शी दिखता था
पतली परतयुक्त
रसभरा रहता था
आज मोटा आवरण ले
इधर-उधर दौड़ रहा।
एक बार टूटा तो महीने भर
तराजू उसे तौल रहा।
अद्भुत नयी-ताजी
उसकी मुस्कान है।
महीने भर में भी मुख
तनिक भी न म्लान है।।
कीड़े-मकोड़े
पास न फटकते
मुक्त है वह इन सबसे
उसको इसका अभिमान है।
शुरू-शुरू में जब
बाजार वह जाता था।
दुकानों पर सजता था
हाथोहाथ बिकता था।
और अपने ही पूर्वजों को
मुँह चिढ़ाता था।
उन्हें ओछा बताता था
उनके रंग-रूप पर हँसता था।
अपना चटक लालरंग दिखा
खूब इतराता था।
ग्राहकों के मन को भी
वह खूब लुभाता था
इसलिए झटपट बिक जाता था।
ऐसे धीरे-धीरे उसने
छोटे, थोड़े चिपटे
थोड़े लाल, गहरे-हल्के हरे
खट्टे - कसैले टमाटरों को
बाजार से धकेल
बाहर कर दिया
फिर उनके हिस्से की
जमीन हड़प लिया।
और खुद मुस्कुराते हुये
उगने लगा
दिनोदिन बढ़ने फूलने लगा।
पट गयी बाजार
लाल-लाल समधर्मी
समवर्णी टमाटरों से।
गायब हो गया देशी टमाटर
और उसी के साथ उसका
स्वाद बेहतर।
अब बस टमाटर का
रंग बचा है
उसका प्राण जा चुका है
अब फिर से
उल्टी गिनती शुरू हो रही है
समाज फिर स्वाद के लिए।
दौड़ने लगा है
मोहभंग हो गया है
उका लाल टमाटर से
और वह फिर उसी
पुराने स्वाद को ढूंढ़ने लगा है।
3 comments:
बहुत ख़ूब ...
बदलते समय अनुसार टमाटर भी बदल रहा है ....
मोहभंग हुआ....
बहुत खूब।।।।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (27-11-2017) को "अकेलापन एक खुशी है" (चर्चा अंक-2800) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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