पहाड़ पर चढ़कर
मैदान को देखो
सब एक नज़र आयेगा।
ऊँचे होकर भी
समदर्शी न हुये
तो मतलब
ऊँचे न हुये।
अभी बहुत
सीढ़ियाँ चढ़नी है
ऊँचा होने के लिये
समभाव से
देखने के लिए।
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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