शब्द स्वयं कोई
अभियान नहीं चलाते
वे अभियान की
अभिव्यक्ति बनते हैं
शब्द स्वयं कोई
क्रांति नहीं करते
क्रांति के सारथी बनते हैं ।
शब्द स्वयं कभी
रूप नहीं गढ़ते
वे रूप को वाणी देते हैं।
शब्द कभी भी
मौन नहीं होते
मौन को भी
अभिव्यक्त करते हैं ।
पाँव न होते हुये भी
कंठ से कान तक
यात्रा करते हैं
फिर उतारते हैं
मस्तिष्क में उस रूप को
जिसकी अभिव्यक्ति के
वे सारथी बने हैं ।
और फिर मस्तिष्क से
एक रूप को
शब्दाकार दे
चल पड़ते हैं
कंठ से कान तक
की अपनी अपरिहार्य यात्रा पर।
यही यात्रा उनका
अस्तित्व है
मस्तिष्क में अर्थ का प्रकाश
है अंतिम पड़ाव।
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