श्रावण-भाद्रपद
राष्ट्र के रक्षक निरापद
अम्बु-अम्बु की धार
धरती की अपनी सम्पद् ।
यह धार नहीं बेकार मही
कण-कण उसका है बंजर
वर्षा का यदि न हो स्वर
अंकुर-अंकुर गति पाता है
पात-पात खिल जाता है।
धरती नूतन परिधान पहन
बनती भारतमाता है।
धन-धान्य इसी से पूरित है
यह ऋतु बड़ी समादृत है।
तरुओं के आनन को देखो
देखो कितना अलंकृत है।
धरती की आभा है वर्षा
धरती की शोभा है वर्षा
जगती का जीवन है वर्षा
अमावस की विभा है वर्षा।
पर्जन्य नहीं वर्षा करते
तो तृषित धरा जीवन रहता
वरुण देव न चितवन धरते
तो तप्त वन-कानन होता
@ममतात्रिपाठी
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