सजा रहे दृगों में एक अश्रु।
वह लुढ़का तो लुढ़क गया।
पर उसकी कीमत मत आँकों।
इतनी भी औकात नहीं है।
अभी सुबह हुयी है, रात नहीं है।
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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