साभार: Google |
आत्मा अमर है
आत्मा अजर है
शरीर नश्वर है
यह बात हम
बचपन से सुनते हैं
और इसे मानते हैं
अपने मध्य देखते हैं
लोगों को
जन्म लेते हुये
फिर मरते हुये।
देखते हैं
शैशवावस्था
बाल्यावस्था
तरुणावस्था
युवावस्था
प्रौढ़ावस्था
और वृद्धावस्था।
हम देखते हैं
जीवन का पूरा चक्र
आदि से अन्त तक
और हम उस चक्र को
देखते हुये
स्वयं भी घूमते हैं
और जीवन का अंतिम पड़ाव
तय करते हुये
मृत्यु तक पहुँचते हैं।
पर प्रश्न यह है कि
क्या मन वृद्ध होता है?
मन प्रौढ़ होता है?
तो उत्तर यह है कि
मन कभी बूढ़ा नही होता
वह सदा बच्चा बना
रहता है
और चिरयौवन के
आवरण से स्वयं को ढँके रहता है।
मन की अवस्था
यौवन तक आकर
रुक जाती है
टिक जाती है
मन कभी
बूढ़ा नहीं होता
न वृद्धावस्था
चाहता है।
और जिसका मन
हताश हो
बूढ़ा हो जाता है
या स्वयं को
वृद्ध मान लेना है
वह इस संसार से
अविलम्ब
कूच कर जाता है।
चल पड़ता है
महाप्रस्थान पथ पर।
जीवन का सत्य
यही है कि
यहाँ सभी ज्ञानवृद्ध
होना चाहते हैं
पर कोई
आयुवृद्ध नहीं होना चाहता।
और मन को तो
कदापि बूढ़ा नहीं
बनाना चाहता।।
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (28-11-2017) को "मन वृद्ध नहीं होता" (चर्चा अंक-2801) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
एक दिन सबको वृद्ध होना है यह जानकार भी हम अनजान रहते हैं
व्याधि रहित जीवन हो तो वही सुखी वर्ना क्या जवान क्या वृद्ध
बहुत अच्छी रचना
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