साभार : Google |
प्राणवायु हमें प्राण देती है
प्रकृति प्राणवायु देती है।
क्या हमने कभी सोचा है कि
हम क्या देते हैं प्रकृति को?
क्यों आमंत्रित कर रहे विकृति को?
आखिर हम क्यों नहीं समझ पा रहे
आसन्न अवनति और भावी विपत्ति को?
हम क्यों कुछ नहीं देते प्रकृति को?
क्या हम सच में भूल गये हैं
पृथिवीसूक्त औ ऋषि अथर्वा की पुकार।
माताभूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः का उच्चार।।
आज हमें स्मरण करना होगा
'यत्ते भूमे विखनामि क्षिप्रं तदपि रोहतु'
का वैदिक ऋषियों का स्वभाव
आज हमें समझना होगा
'मा ते मर्म विमृग्वरी मा ते हृदयमर्पिपम्'
से सम्पन्न पूर्वजों का कृतज्ञ-भाव।।
आज फिर हमें ईशावास्योपनिषद् के
उस प्रथम मंत्रार्थ का स्मरण करना होगा
उसपर चिंतन-मनन-अनुवर्तन करना होगा
जो त्यागपूर्वक भोग का उद्घोषक है।
जो भारतीय चिति का शाश्वत पोषक है।।
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