Wednesday, November 29, 2017

सूर्य

उगते हुये सूर्य में 
एक आशा दिखती है 
अस्तांचलगामी सूर्य में 
निराशा झलकती है। 
उगते सूर्य की किरणें 
आतप में भी शीतल होती है।
अस्तांचलगामी सूर्य की रश्मियाँ
जीवन को कुछ रिक्त करती हैं।
उदित सूर्य सूत्रधार होता है जगती का
अस्त सूर्य पटाक्षेप करता है जागृति का। 
एक जागरण है
एक शयन है। 
एक उत्थान है
एक पतन है।
एक उदय है
एक अवसान है। 
कौन कहता है कि 
रवि का स्नेह समान है। 
रवि भी बाल-युवा-वृद्ध होता है।
प्रसन्न और क्षुब्ध होता है।
रवि के जीवन में ही
जगती का सृष्टि है संहार है
इस जगत् का अधिष्ठान और 
विस्तार है। 

1 comment:

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सुंदर .. आशा निराशा और जीवन के विविध रंग भी तो इसी सूर्य के माध्यम से दिख जाते हैं ... अच्छी रचना ...

यथार्थ

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