प्रवासी पक्षी
उड़ते हैं मुक्त गगन में
सुदूर पर्वतों तक
नदियों तक
कन्दराओं के मुहानों तक
समुद्र तटों तक
सुगम-दुर्गम द्वीपों तक
नापते हैं सरिता
सागर, समुद्र
खाड़ियाँ, झरनें
तथा महाद्वीप
बसेरों को बदलते हैं
बदलते हैं हवा और पानी
नापते हैं योजनों
दिशाओं का थाह लेते हैं
फिर भी लौट आते हैं पक्षी
अपने घर
अपने घोसलों
अपने धरती में।।
कौन सा वह बन्धन है?
जो मुक्त होकर भी
उन्हें बाँधता है
योजनों दूर जाकर भी
घर नहीं भूलता
घर का रास्ता उन्हें याद आता है
और फिर लौट आते हैं वे
उसी घरौंदे में।।
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