जंगल में जगाई
क्रान्ति की अलख
जग गये वन
और बंशी की धुन छोड़
रण-बिगुल बजाने लगे
कल तक जो निरीह थे
नाको चने चबवाने लगे।।
बिरसा के नेतृत्व में
वह शौर्य और सुवास था
कि वन अपनी सौम्यता को
किनारे रख जाग उठा।
कह उठी भोली-भाली जनता
अब न सहेंगे अत्याचार
अब चढ़ेगी प्रत्यंचा
अकिंचन तीर-धनुष से ही सही
पर करेंगे आतंक का प्रतिकार।।
बिरसा के शब्दों से
बिरसा के आह्वान से
उबल उठा स्वाभिमान से
आप्लावित हुआ
स्वाभिमानी रक्त की उफान से।।
बिरसा की क्रान्तिगाथा
सामान्य कहानी नहीं है
वह ऐसी शौर्यगाथा है
जिसने स्वतंत्रता संग्राम की
कहानी लिखी है।।
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