Tuesday, November 21, 2017

प्रदूषण और प्रकृति

 तितली दम तोड़ती हुयी

धूल से लदे पेड़
भार से दबकर
उल्टी होतीं पत्तियाँ
हिलने में असमर्थ हो
रो पड़ी हैं।
उनका क्रन्दन देख
अन्ततः स्थावर
बोल पड़ा।
शीत से बचने के लिए
तुषार से लड़ने के लिए
हम सशक्त हो खड़े थे
पर अब हम असहाय हैं
धूलि से सने हुये
स्थिर हो खड़े हुये।
छिनगाओ हमारी शाखायें
सूख जाने दो पत्तियों को
गिरकर सड़ जाने दो पत्तियों को
मिट्टी में मिल जाने दो
मेरी शाखाओं और पत्तियों को।
मिट्टी में मिलना
इस धूलि को ढोने से बेहतर है

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