धूल-धुँये की मोटी परत
जिद्दी हो गयी है
धुंध बनकर छायी है
न हटने के लिये।
यह सामान्य समस्या नहीं
आपदा है।
वे फुलझड़ियों से
निदान की बात करते हैं
और कहते हैं
बंद कर दो
विद्यालयों को
घर में कैद रखो
नौनिहालों को।
पर कौन बताये उनको
इतनी अक्ल भी नहीं
कि हवायें
मकान और कूड़ेदान में
फर्क नहीं करतीं।
प्रदूषित धुँये
और यज्ञ के धूम में
अन्तर नहीं करतीं।
आर-पार जाती हैं बेधड़क
वो भार ढोते हुये
जो तुमने उनपर लादा है
प्रदूषण करते हुये।
बच्चों को कैद करना
इसका निदान नहीं है।
या तो ऐसा सोचने वालों को
सच में संकट का अनुमान नहीं है।
या तो वे ऐसे लोग हैं
जो गटक जाते हैं प्रकृति को
जनता की सुलभ संपत्ति को
और स्वयं धनकुबेर बन
जनसमस्याओ का
प्राइवेट समाधान खोज सकते हैं
वे आॅक्सीजन और मास्क खरीद सकते हैं
इसलिये उन्हें विषैली धुंध का
तनिक भी भय नहीं
वे निर्भय हैं।
जिद्दी हो गयी है
धुंध बनकर छायी है
न हटने के लिये।
यह सामान्य समस्या नहीं
आपदा है।
वे फुलझड़ियों से
निदान की बात करते हैं
और कहते हैं
बंद कर दो
विद्यालयों को
घर में कैद रखो
नौनिहालों को।
पर कौन बताये उनको
इतनी अक्ल भी नहीं
कि हवायें
मकान और कूड़ेदान में
फर्क नहीं करतीं।
प्रदूषित धुँये
और यज्ञ के धूम में
अन्तर नहीं करतीं।
आर-पार जाती हैं बेधड़क
वो भार ढोते हुये
जो तुमने उनपर लादा है
प्रदूषण करते हुये।
बच्चों को कैद करना
इसका निदान नहीं है।
या तो ऐसा सोचने वालों को
सच में संकट का अनुमान नहीं है।
या तो वे ऐसे लोग हैं
जो गटक जाते हैं प्रकृति को
जनता की सुलभ संपत्ति को
और स्वयं धनकुबेर बन
जनसमस्याओ का
प्राइवेट समाधान खोज सकते हैं
वे आॅक्सीजन और मास्क खरीद सकते हैं
इसलिये उन्हें विषैली धुंध का
तनिक भी भय नहीं
वे निर्भय हैं।
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