Tuesday, November 21, 2017

प्रकृति तुम धन्य हो

प्रकृति तुम धन्य हो
उपेक्षा में अपेक्षा में
खोज लेती हो जीवन
और स्पन्दित हो उठती हो।
प्रकृति तुम धन्य हो
शोषण नजरअंदाज कर
तिरस्कार भूलकर
तुम पोषित करती हो
पृथ्वी का आँचल
रंगों से भरती हो।
प्रकृति तुम धन्य हो।
तुम्हीं से आग पा
जगती जागृत है।
तुम्हीं से पराग पा
मधुमक्खी रचती
मधु-अमृत है।
सबके जीवन का
आश्रय हो तुम
प्रकृति तुम धन्य हो।।

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