Wednesday, November 22, 2017

हे ड्यौढी के दीप

हे ड्यौढी के दीप
मार्ग प्रशस्त करते रहना।
सजी-सजायी लड़ियों हैं
फिर भी तुम जलते रहना।।
लड़ियों में प्रकाश प्रखर है
पर शलभ वहाँ नहीं फटकते।
दीपक के मद्धिम प्रकाश में
अपना प्राण निछावर करते।।
हे ड्यौढी के दीप
तुम सतत् जलते रहना।
तुम अन्धकार के प्रतिद्वंद्वी हो
प्रभा सदा भरते रहना।
तुम अन्धकार को सदा चीरते
बनते हर कुटिया की आभा।
तुम से ही दीप्तिमान अमावस
पूर्णचन्द्र से बढ़कर शोभा।।
काली रात अमावस तुमसे
प्रकाशमती हो विहँस उठे
स्नेहमय शिखा ज्योतित हो
ड्यौढी का तम हर सके।
हे ड्यौढी के दीप तुम
अजस्र प्रकाशमान रहना।
प्रकाश के महासमुद्र में
बूँद बन बहते रहना।।

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