आँख होते हुये भी
दृष्टिगोचर नहीं होता
कान होते हुये भी
श्रवणगोचर नहीं होता।
यद्यपि वह इतना सूक्ष्म नहीं
कि खुली आँखों से भी गोचर नहीं होता।
गली-मोहल्लो
चौक-चौराहों
शून्य-सम्मर्द स्थानों
शोरगुल और
नीरवता के बीच
हर स्थान पर
वह होता है
घटता है
हो सकता है
परन्तु फिर भी
कान वालों को
सुनाई नहीं पड़ता
आँख वालों को
दिखाई नहीं पड़ता।
ज्ञान का करण
ये दोनों प्रमुख इन्द्रियां
मौन हो अनदेखा करती हैं
हर चीरहरण।।
संज्ञाशून्य
संवेदनाशून्य
ज्ञानशून्य बनी रही हैं
मौन खड़ी रही हैं।
विडम्बना है
सक्रिय होती है ज्ञानेन्द्रिय
तीसरी प्रमुख इन्द्रिय
समाचार छपते ही
टेलीविजन पर
घटना दिखते ही
और वह इन्द्रिय
अक्षर-वर्ण-शब्द-वाक्य
का अम्बार खड़ा करने लगती है।
बातों से ही सब कुछ बड़ा करने लगती है।
लगता है कि जिह्वा के शब्द ही
समाधान हैं
और सब तो बस
मूकदर्शक मेहमान है।
चपला जिह्वा के
बरस जाने पर
हृदय के उद्गार
निकल जाने पर
फिर अन्य इन्द्रियाँ
अपने कर्तव्य का
इतिश्री मान लेती हैं
और इस तरह समाज भी सो जाता है।
पर फिर जगता है
जब कोई नया काण्ड गूँजता है
कहीं फिर धुँआ उठता है
इसीतरह
यह प्रत्यक्ष करतूत
परोक्षवत् चलती है
चलते-फिरते
एकाकी - भीड़ में
घर में बाजार में
सड़कों पर मिलती है
और एक आजीवन दंश दे जाती है
मानवता को फिर वह कलंक दे जाती है
जो कभी नहीं मिटता
वह घाव दे जाती है
जो कभी नहीं भरता
बस हर बार
हर आघात के साथ
गहरा होता है
हरा होता है।
इस हरियाली में
कान स्वयं को बहरा बना लेते हैं
आँखें स्वयं अँधियार छा लेती हैं।
त्वचा तो कुछ सोचती ही नहीं
वह तो वैसे भी
स्पर्श को ही जानती है
और सभी इन्द्रियों के धारक
ऐसा मानते हैं कि
इस कलंक से
उनका स्पर्श नहीं होगा
क्योंकि वे काजल की कोठरी से बाहर हैं।
पर यह उनका भ्रम है
वे मौन होकर
अपने परितः
काजल की कोठरी
मजबूत कर रहे हैं
और स्वयं उस ओर बढ़ रहे हैं।।
#16_दिसम्बर
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (18-12-2017) को "राम तुम बन जाओगे" (चर्चा अंक-2821) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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