आज फिर उस ठाँव आयी
ठौर जहां है सदा से
तार बँधा है हृदय का
झंकृत हो वह जहाँ से।
जहाँ की संगीत लेकर
मैं स्वरों को भर रही हूँ
जहाँ के नव रस रुचिर से
कंठ-मन तर कर रही हूँ।।
रिश्ते-नाते, जान-पहचान औ हालचाल सब जुड़े टके से। टका नहीं यदि जेब में तो रहते सभी कटे-कटे से।। मधुमक्खी भी वहीं मँडराती मकरन्द जहाँ वह पाती ...
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