शीत में वे खिल रहे हैं
बढ़ रहा है शैत्य ज्यों
वैसे ही वे बढ़ रहे हैं
शीत में वे खिल रहे हैं।
आभास हैं सूर्य का
सूरज की किरणों का
देखकर उन्हीं को
लोग आगे बढ़ रहे हैं।
शीत में वे खिल रहे हैं।।
मुस्कान भर-भर खिले हैं
देव के सिर चढ़ रहे हैं
या धूलि में मिल रहे हैं
शीत में वे खिल रहे हैं।।
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