जन-जीवन का रिक्तपात्र।
कण-कण प्रफुल्लित हो
नवरस का हो सूत्रपात।।
वाणी पर साक्षात् सरस्वती
वीणा ले हों विराजमान
श्रीगणेश का आशीष ले
हो निरन्तर लेखनी प्रवाहमान।
बुद्धि और विवेक से
जीवन सम्पन्न हो।
स्वयं सुखी रहे हम
और सब प्रसन्न हों।।
@ममता
वसंतपञ्चमी पर आपको सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
3 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-01-2018) को "जीवित हुआ बसन्त" (चर्चा अंक-2857) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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बसन्तपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
nice lines, looking to convert your line in book format publish with HIndi Book Publisher India
बसंत पंचमी के आगमन और प्रेम के मनुहार का यह मौसम सुहावना होता है
बहुत सुंदर रचना
हार्दिक शुभकामनाएं
सादर
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