तुम उन्हें भूले नहीं
तुमने उन्हें जानबूझकर भुला दिया
उनकी स्मृतियों को धकेलकर कोने में सुला दिया।
स्वयं को प्रासंगिक सोचते रहे तुम
और उनसे मुँह मोड़ते रहे तुम।
तुम करते रहे केवल बाहरी चमक में तुलना
उनके अंतस् का स्नेहमय नाद तुमने न सुना
या यूँ कहें कि सुनकर किया अनसुना।
और आज जब दशकों बाद
तुम अप्रासंगिक हो रहे हो
प्रासंगिकता बनाये रखने के
व्यर्थ यत्न कर रहे हो
तब वो सचेत हो सुलायी गयीं
स्मृतियाँ क्यों जाग रही हैं।
आखिर अब तुम्हारीं नजरें
उस उपेक्षित कोने को
क्यों ग्लानि-लज्जा-पश्चाताप-अनुराग से
ताक रही हैं?
यदि समय रहते जाग जाओ,
समझो समय चक्र को
तो बताओ क्यों
अंतसमय जीवन नीरस और व्यर्थ हो?
@ममतात्रिपाठी
तुमने उन्हें जानबूझकर भुला दिया
उनकी स्मृतियों को धकेलकर कोने में सुला दिया।
स्वयं को प्रासंगिक सोचते रहे तुम
और उनसे मुँह मोड़ते रहे तुम।
तुम करते रहे केवल बाहरी चमक में तुलना
उनके अंतस् का स्नेहमय नाद तुमने न सुना
या यूँ कहें कि सुनकर किया अनसुना।
और आज जब दशकों बाद
तुम अप्रासंगिक हो रहे हो
प्रासंगिकता बनाये रखने के
व्यर्थ यत्न कर रहे हो
तब वो सचेत हो सुलायी गयीं
स्मृतियाँ क्यों जाग रही हैं।
आखिर अब तुम्हारीं नजरें
उस उपेक्षित कोने को
क्यों ग्लानि-लज्जा-पश्चाताप-अनुराग से
ताक रही हैं?
यदि समय रहते जाग जाओ,
समझो समय चक्र को
तो बताओ क्यों
अंतसमय जीवन नीरस और व्यर्थ हो?
@ममतात्रिपाठी
2 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (21-03-2018) को ) पीने का पानी बचाओ" (चर्चा अंक-2916) (चर्चा अंक-2914) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
अर्थपूर्ण रचना ...
Post a Comment