कुतूहल के आलोक में
नव-चेतना बिखरी पड़ी है।
अनुसंधान का जगे अलख
आयी अब वह घड़ी है।
आशा और आश्चर्य
दोनों हैं शाश्वत-सहचर।
इनसे नवनवोन्मेषशालिनी
प्रतिभा दृष्टिगोचर।।
विना उत्साह के
ऊर्जा संचार नहीं होता।
विना पग बढ़ाये
स्वप्न साकार नहीं होता।
साकार से बड़ा आकार
गतिमान हो गढ़ो तुम
मत सोचो सपनों का ध्वंस
बस आगे बढ़ो तुम।।
नव-चेतना बिखरी पड़ी है।
अनुसंधान का जगे अलख
आयी अब वह घड़ी है।
आशा और आश्चर्य
दोनों हैं शाश्वत-सहचर।
इनसे नवनवोन्मेषशालिनी
प्रतिभा दृष्टिगोचर।।
विना उत्साह के
ऊर्जा संचार नहीं होता।
विना पग बढ़ाये
स्वप्न साकार नहीं होता।
साकार से बड़ा आकार
गतिमान हो गढ़ो तुम
मत सोचो सपनों का ध्वंस
बस आगे बढ़ो तुम।।
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