तुम्हारे राग से बँधा यह
सप्तस्वर मेरा बना है
तुम्हारी ज्योति मुझको मिली
यह मेरी प्रार्थना है
सूर्य बन तुम
चन्द्र को आलोक देते फिर रहे हो
तड़ित झंझा सह रहे हो
बादलों से घिर रहे हो
तुम तो आलोक के
अजस्र स्रोत
तुमसे सब ओतप्रोत
फिर ग्रहण क्यों
राहु क्यों है
शत्रुओं की भी
शक्ति तुम हो
फिर पराजय भाव क्यों है?
आँच तेरी सह सके
वह आत्मबल किसमें कहाँ है?
फिर भी आखिर क्यों दिवाकर
हिम का आसन जमा है
आज अपनी आग से तुम
आज अपनी आँच से तुम
हिमालय पिघला दो
समुद्र का हर बूँद पीकर
भाप बना उड़ा दो
आज तुम अपनी आग ले
चल पड़ो यदि व्यष्टिहित में
पलक झपकते ही
प्रलय का साक्षी जगत यह
तुम तो मानव के उद्धारक
तुम तो जीवन के विकासक
भला भूल पाओगे कभी
अपना गुण सर्वप्रकाशक
गुण तुम्हारा स्वभाव प्यारे
यही तुम्हारा अस्तित्व है
इसलिए अंगार हो तुम
फिर भी अद्वितीय व्यक्तित्व है।
तुममें वह आग है जो
जगत को जीवन देती है।
तुममें वह साधना है
जिसपर जगत-धुरी टिकी है।।
@ममतात्रिपाठी
सप्तस्वर मेरा बना है
तुम्हारी ज्योति मुझको मिली
यह मेरी प्रार्थना है
सूर्य बन तुम
चन्द्र को आलोक देते फिर रहे हो
तड़ित झंझा सह रहे हो
बादलों से घिर रहे हो
तुम तो आलोक के
अजस्र स्रोत
तुमसे सब ओतप्रोत
फिर ग्रहण क्यों
राहु क्यों है
शत्रुओं की भी
शक्ति तुम हो
फिर पराजय भाव क्यों है?
आँच तेरी सह सके
वह आत्मबल किसमें कहाँ है?
फिर भी आखिर क्यों दिवाकर
हिम का आसन जमा है
आज अपनी आग से तुम
आज अपनी आँच से तुम
हिमालय पिघला दो
समुद्र का हर बूँद पीकर
भाप बना उड़ा दो
आज तुम अपनी आग ले
चल पड़ो यदि व्यष्टिहित में
पलक झपकते ही
प्रलय का साक्षी जगत यह
तुम तो मानव के उद्धारक
तुम तो जीवन के विकासक
भला भूल पाओगे कभी
अपना गुण सर्वप्रकाशक
गुण तुम्हारा स्वभाव प्यारे
यही तुम्हारा अस्तित्व है
इसलिए अंगार हो तुम
फिर भी अद्वितीय व्यक्तित्व है।
तुममें वह आग है जो
जगत को जीवन देती है।
तुममें वह साधना है
जिसपर जगत-धुरी टिकी है।।
@ममतात्रिपाठी
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