Tuesday, March 13, 2018

विजय के स्वप्न

हो रहीं आँखें उनींदी
पर विजय के स्वप्न इनको
आज बस सोने न देते।
सागर की उत्ताल लहरें
आ रहीं हैं पास देखो
पर तनिक भ्रंश होने न देते।
जिजीविषा का ज्वार यह
जिगीषा की पुकार है
अड़चनों का अम्बार फिर भी
विजय की जयकार है।
@ममतात्रिपाठी

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