Monday, March 26, 2018

खोखले शब्द

यदि हृदय में भाव न हों
खोखले शब्द क्या देंगे?
खोखली हों भावनायें
शब्दों में क्या कहेंगे?
जोरदार शब्दों से
तोतला स्वर सुंदर है
उस स्वर में भाव वही
जो बसा अन्दर है।
भारी-शब्दों के जाल अब
अर्थ बिन व्यर्थ हो रहे हैं
शब्दों की इन शवों की
हम साधना क्यों कर रहे हैं?
जिस ताल पर जिह्वा हमारी
स्वप्न में भी थिरकती है
जिस खोखले अर्थ के
बिम्ब वहां उड़ेलती है।
हर बिम्ब में दीमक लगा है
भाव मूषक कुतर रहा।
सोचिये आप ने जो सोचा
क्या वही झटपट कहा।
व्यंजनाओं पर नये
पहरे लगे, पर्दे टंगे हैं
हमारे उदासियों के भाव भी
चहँकते शब्दों से लदे हैं।
हम व्यर्थ की शब्द-साधना में
संशोधन का स्वप्न लिये
खाईंयों में गिर रहे हैं
वाणी को गल्प किये।
अरे, एक दीप ही जले
पर लौ असली होनी चाहिए
एक दीप ही जले
पर वर्तिका स्नेहमयी होनी चाहिए।
विना स्नेह सम्मान के
मधुर टपकाया भी तो क्या?
छद्म सुगंध सूँघ रूप देख
कोई मधुप ललचाया भी तो क्या?
क्या मधुमक्खियाँ भी इस नकल से
मकरन्द पान करेंगी
क्या वे इस खोखलेपन से
मधु निर्माण करेंगी?
खोखले शब्दों से
अर्थ खोखला हो जाता है
हम छलते हैं स्वयं को
कोई और नहीं छला जाता है।
यह छल-छद्म छोड़कर
हमे जानना चाहिये कि कितना भी
 बना लें हम पैरा का गोड़
पैरा के गोड़ से न चला जाता है।
बस इस चाल में
स्वयं को ही छला जाता है।।
@ममतात्रिपाठी

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