फोटो:साभार-Virender S. Negi जी |
जल से आर्द्रता ले
अँखुवाया जौ
हरी पत्तियों में
मुस्कुरा उठता है
नौ दिन शंख की ध्वनि
सप्तशती का पाठ
अगरु-सुगंध में
पलकर बड़ा होता है
जीवन का संदेश देता है।
जौ से हमारा
युगों -युगों का नाता है।
यह पूर्वजों का प्रतिनिधि है
वेदों का पुरोहित है
ऋषियों की वाणी से
सिंचित है
हमारी माटी की सर्जना है
ईश्वरीय प्रार्थना है
मानवता की शेवधि है
पुण्यों की सन्निधि है
यह अकाल का अन्न है
यह सुकाल का अन्न है
इसे पाकर उगाकर
जीवन यह धन्य है
धन-धान्य सम्पन्न है।
1 comment:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-03-2017) को "सरस सुमन भी सूख चले" (चर्चा अंक-2922) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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